भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़
Kavita Kosh से
Ranjanjain (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 1 दिसम्बर 2008 का अवतरण
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार मैनें उससे बेवफ़ाई की
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या फ़िर ग़ज़लसराई की
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की
तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की
फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की