भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम सुपारी-से / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
Dr.bhawna (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 4 दिसम्बर 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन सरौता

हम सुपारी-से।


ज़िंदगी-है तश्तरी का पान

काल-घर जाता हुआ मेहमान


चार कंधों की

सवारी-से।


जन्म-अंकुर में बदलता बीज़

मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़


साँस वाली

रेजगारी-से।


बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान

है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान


दिन जवानी के

बिहारी-से।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।