भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी ज़ईफ़ शजर की उदास छाया है / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 7 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है /...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी ज़ईफ़ शहर की उदास छाया है
वो अपने गाँव से जिसको उठाके लाया है

हरेक मोड़ पे लगता है टोल-टैक्स यहाँ
कि इस शहर को किसी सेठ ने बसाया है

मुझे ये इल्म नहीं था कि रो पड़ेगा वो
जिसे हँसाने की कोशिश में गदगुदाया है

भटकता फिरता रहा राम भी तो जंगल में
कि ज़िदगी में यहाँ किसने चैन पाया है

वो एक अब्र जो रोता रहा मेरी छत पे
लगा कि कि दर्द का उत्सव मनाने आया है

ये बात मेरे पिता को ज़रा ख़राब लगी
कि मैंने घर से अलग-अलग घर बनाया है.