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कूप-मण्डुक घर में रहे / जहीर कुरैशी
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कूप-मण्डूक घर में रहे
कल्पना के सफ़र में रहे
चैन से सो न पाए कभी
इस कदर लोग डर में रहे
बन रहे हैं जो खुद सुर्खियाँ
वे निरंतर सफ़र में रहे
जितने सूरजमुखी फूल थे
खूब खुश दोपहर में रहे
वो जो निर्णय नहीं ले सके
द्वैत उनके ही स्वर में रहे
दृष्टि-दोषों की मत पूछिए
हम सभी की नज़र में रहे
लोग विषधर नहीं थे मगर
विषधरों के असर में रहे.