भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चार पेड़ के / विनोद कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:14, 27 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल |संग्रह= }} <Poem> चार पेड़ों के एक...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चार पेड़ों के
एक-दूसरे के पड़ोस की अमराई
पेड़ों में घोंसलों के पड़ोस में घोंसले
सुबह-सुबह पक्षी चहचहा रहे थे
यह पड़ोसियों का सहगान है-
सरिया-सोहर की गवनई।

पक्षी,
पक्षी पड़ोसी के साथ
झुंड में उड़े।
परन्तु मेरी नींद
एक पड़ोसी के नवजात शिशु के रुदन से खुली।

यह नवजात भी दिन
सूर्य दिन को गोद में लिए है
सूर्य से मैंने दिन को गोद में लिया।