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आज फिर मुझको खिड़की से/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००३

हमारी दोस्ती बहुत गहरी थी
जिसको लोहा कहा गया था

मगर जब उतरे बर्ग़े-बहार
दोस्ताना मोर्चा खा गया था

बर्ग़े-बहार= बहार के पत्ते, मोर्चा= जंग, rust