भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर / नवल शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 3 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवल शुक्ल |संग्रह=दसों दिशाओं में / नवल शुक्ल }} <P...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह शहर
हमारा शहर है

बिल्कुल अपना
अपनी गाय की तरह
बिसुका हुआ।

अपने बैलों की तरह
जख़्मी कंधों वाला।

बुज़ुर्गों की तरह
तहदार।

बाप की तरह
बेतरह बच्चों वाला।

माँ की तरह
आस पर उपास
संगति की तलाश में।