भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पता नहीं / जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
Anil Janvijay (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:31, 2 मार्च 2008 का अवतरण
कभी मीठा-खारा पानी
लोहा पत्थर कभी
कुछ-न-कुछ होता है प्राप्य
जब ज़मीन खोदते हैं आप या हम
पितरों की अनझुकी रीढ़ के अवशेष
माखुर की डिबिया
चोंगी सुपचाने वाली चकमक
मूर्ति में देवता
देवता के हाथों में त्रिशूल खड्ग बाण
नाचा के मुखौटे
कभी भी मिल सकते हैं
यह सब पता है हम सभीको
पता नहीं है
हम कहाँ उड़ रहे...