भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु के बाद / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
Anil Janvijay (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:32, 2 मार्च 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शमशान की काँटेदार फ़ेंस पार करने के बाद

पेड़-पत्तों-फूलों की दुनिया नज़र आएगी

पंखुड़ियों पर बिखरे होंगे सपनीले ओसकण

सूर्योदय के विलम्ब के बावजूद

फूलचुहकी गाएगी, इतराएगी

रोशनी की अगवानी करेगी

तब हवा भी गाएगी दुखों का इतिहास

नए अंदाज़, अभिनव छंदों में

जगन्नाथ मंदिर का पुजारी

फेफड़ों में समूचा उत्साह भरकर

फूँकेगा शंख

तुलसीदल और हरिद्रा-जल

चढ़ने के बाद बँटेगा

निर्माल्य

वहीं-वहीं सजल नेत्रों से

मैं भी खड़ा रहूँगा

तुम्हारे द्वार पर