भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूध से भारी पीड़ा से भरी / प्रेमरंजन अनिमेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 8 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमरंजन अनिमेष |संग्रह=मिट्टी के फल / प्रेमरं...)
'माँऽऽऽऽ... !'
चिल्लाता
मैं धाता भीतर
'बाँऽऽऽ...'
आती उसकी आवाज़
दूध से भरी पीड़ा से भरी...