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चेहरों पर हों कुछ उजाले, सोचता हूँ / प्राण शर्मा

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चेहरों पर हों कुछ उजाले, सोचता हूँ
लोग हो ख़ुशियों के पाले, सोचता हूँ

जिस्म के काले जो होते दुख नहीं था
शख़्स हैं पर मन के काले, सोचता हूँ

आदमी गर आदमी से प्यार करता
यूँ न बहते ख़ूँ के नाले, सोचता हूँ

ढूँढ़ लेता मैं कहीं उसका ठिकाना
पाँव में पड़ते न छाले, सोचता हूँ

'प्राण' दुख आए भले ही ज़िंदगी में
उम्र भर डेरा न डाले, सोचता हूँ.