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प्रिया-2 / ध्रुव शुक्ल
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शब्द के पास रहो
उसे अकेला मत छोड़ो
कोई हर लेगा
आक्रमण करते हैं शत्रु
स्वरों पर टूटते हैं
व्यञ्जनों को लूटते हैं
बहुरूपिये
उठा ले जाते हैं उसे
आकाश मार्ग से
न जाने किस दिशा में
रोते-बिलखते रह जाते हैं हम
कुछ कह नहीं पाते
पता पूछते फिरते हैं--
वृक्षों से लताओं से
वन पाँखियों से
पर्वतों से सरिताओं से
रास्तों पर बिखरे पड़े हैं
हमारे ही पहनाए हुए गहने
हम उन्हें उठाते हैं
घने वन में प्रिया की याद आती है...