भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोचते रह जाने के डर से / प्रेम साहिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम साहिल |संग्रह= }} <Poem> कई काम अटक जाते हैं सोच...)
कई काम अटक जाते हैं
सोचने से
या देर में होते हैं
सोच में पड़कर
सोचते रह जाने के डर से
कई काम
बग़ैर सोचे ही कर डालते हैं लोग।