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वजूद / लीलाधर मंडलोई
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मैं इतनी अधिक सुन्दर
मेरे पीछे इतने
मैं असहाय गंदगी के दलदल में
मैंने कुछ पाने की जगह
नफ़रत की अपने वजूद से और
जब-जब आत्महत्या की कोशिश
हर बार सामने एक बूढ़ी माँ थी
और एक बहन
जो मुझसे अधिक सुन्दर थी