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सुनो भाई साधो / गोरख पाण्डेय

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< poem> माया महाठगिनि हम जानी, पुलिस फौज के बल पर राजे बोले मधुरी बानी, यह कठपुतली कौन नचावे पंडित भेद न पावें, सात समन्दर पार बसें पिय डोर महीन घुमावें, रूबल के संग रास रचावे डालर हाथ बिकानी, जन-मन को बाँधे भरमावे जीवन मरन बनावे, अजगर को रस अमृत चखावे जंगल राज चलावे, बंधन करे करम के जग को अकरम मुक्त करानी, बिड़ला घर शुभ लाभ बने मँहगू घर खून-पसीना, कहत कबीर सुनो भाई साधो जब मानुष ने चीन्हा, लिया लुआठा हाथ भगी तब कंचनभृग की रानी.

(विद्रोही संत कवि से क्षमा-याचना सहित) </poem>