भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहाड़ पर धूप / अनूप सेठी

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> सीढ़ियाँ चढ़ के आती हुई सी धूप दो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

सीढ़ियाँ चढ़ के आती हुई सी धूप
दोपहर शायद इन दिनों भी अच्छी होगी वहाँ
शाम तक बैठी रहे साथ साथ

रूह का गुनगुना स्पर्श।

तमस को हवा उलीच के ले जाए
पहाड़िन चांदी के बर्क बांटे सुबह सुबह।

बाबू! जब भीड़ में चुंधिया जाओ
तो देखना अक्स

रूह का गुनगुना स्पर्श।

रातरानियों की खुशबू अगले मौसम दूँगी
धौलाधारी चांदनी में लपेट लपेट
निर्गले मोसम देवदार डूबे रोम ले जाना
आज दोपहर भर बैठ के खोलो पोर पोर।

धूप कहे यह मेरी तुम्हारी अपनी झिंझोटी है
शहर में खुले आम हांक लगाओगे डूब जाएगी।

रूह का गुनगुना स्पर्श।
                                   (1984)

_______________________________
1. अगले से अगले
2. हिमाचली लोकगीत का एक प्रकार