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अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत / खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत
-बहिनी !
बिरछन पे चिक
-चिक ,किरैयन में किच-किच,चोंचें नचाइ पियरी पियरी !
चिरैयाँ सत-बहिनी !
एकहि गाँव बियाहिल सातो बहिनी,मइके अकेल छोट भइया ,
'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा ' कहि के पठाय दिहिल मइया !
'माई पठाइल रे भइया , मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !'
सात बहिन घर आइत
-जाइत ,मुख सुखला ,थक भइला ,
साँझ परिल तो माँगि बिदा भइया आपुन घर गइला!
अगिल भोर पनघट पर हँसि
-हँसि बतियइली सतबहिनी !
 
हमका दिहिन भैया सतरँग लहंगा
,हम पाये पियरी चुनरिया ,
सेंदुर
-बिछिया हमका मिलिगा ,हम बाँहन भर चुरियाँ !
भोजन पानी कौने कीन्हेल अब बूझैं सतबहिनी !
 
का पकवान खिलावा री जिजिया ?
मीठ दही तू दिहली ?
री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली ?
तू
-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सतबहिनी !
 
भूखा
-पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली ,
दधि
-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली ,
उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ
-रोइ सतबहिनी !
 
'तुम ना खबाएल जेठी ?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं
एकल हमार भइया
, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं !
साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सतबहिनी!