भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशय बदल गया / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:40, 22 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र आर्य }} <poem> बेशक अर्थ वही हो आशय बदल गया ...)
बेशक अर्थ वही हो
आशय बदल गया
गतियाँ भीतर-बाहर की कुछ यों बदलीं
जाने का अंदाज़ महाशय बदल गया।
अहम् सिकुड़ता जाता फिर भी वयं नहीं
भावबोध बदले हैं लेकिन शिवं नहीं
सीमाएँ तदर्थ होती है
टूटेंगी
जाने क्या-क्या बदला लेकिन एवं नहीं
जीवन का रस नहीं बदलता रुचियों से
प्यास वही है
भले जलाशय बदल गया।
चीज़ों से ज़्यादा चीज़ों का मतलब है
नहीं हो सका था जो तब
वो सब अब है
नहीं बदल के ही चीज़ें सड़ जाती हैं
जीवित रहना भी जीवन का करतब है
देह के बाहर देह बिना कायिक प्रजनन
गोद नहीं बदली
गर्भाशय बदल गया।