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नयनों से पिघल-पिघल कज्जल कर रहा कपोलों को श्यामल / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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नयनों से पिघल-पिघल कज्जल कर रहा कपोलों को श्यामल।
पट सरका देता स्कंध-देश से बात न सुनता पवन चपल।
पलकों से हटा-हटा बिखरी अलकें चन्दा से बतियाती।
थिरकती मयूरी देख तुम्हारी स्मृति से भर आती छाती।
नासापुट भर जाते सुगंध से लगता बहुत समीप खड़े।
छिप-छिप कैसी करते लीलायें खिलवाड़ी हो प्राण! बड़े।
लीलाधारी! आ जा विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥107॥