भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेल-खेल में / नरेन्द्र जैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:09, 3 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र जैन |संग्रह=तीता के लिए कविताएँ / नरेन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख रहा हूँ मैदान
और
बच्चे दौड़ रहे हैं

और दौड़-दौड़ में एक दिन
बच्चे बड़े हो जाएंगे

सड़क पर
बाईं ओर
पैदल चलते-चलते
देखेंगे खेल का मैदान
कोई कहेगा
यह हमारा मैदान हुआ करता था

मैदान के बाहर
एक भविष्य है
मैदान म,एं एक बड़ी गेंद उछलती
जिसके पीछे भागते
अभी छोटे-छोटे पैर

मैदान के बाहर
ख़ून-पसीने के खेल हैं लगातार
चलते

ज़रा देखो एक बच्चा
दौड़ता तेज़ी से
मैदान से बाहर आ रहा है