भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस क़दर साद-ओ-पुरकार कहीं देखा है / सौदा

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:51, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} category: ग़ज़ल <poem> इस क़दर साद-ओ-पुरकार1 कहीं द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस क़दर साद-ओ-पुरकार1 कहीं देखा है
बेनमूदार2 इतना नमूदार3 कहीं देखा है

ख़्वाह4 काबे में तुझे ख़्वाह मैं बुतख़ाने में
इतना समझूँ हूँ मिरे यार कहीं देखा है

दुख-दहिंद5 और भी हैं लेक6 किसी के कोई
दिल-सा भी दर-पए-आज़ार7 कहीं देखा है

नज़र आती ही नहीं शक्ले-रिहाई8, मुझ-सा
साइते-बद9 का गिरफ़्तार कहीं देखा है

फिरे है कूच-ओ-बाज़ार में तू क्यों 'सौदा'
जिंसे-दिल10 का भी ख़रीदार कहीं देखा है

शब्दार्थ:

1. सादा और नाज़-नख़रे वाला, 2. अप्रकट, 3. प्रकट, 4. चाहे, 5. दुख देने वाले, 6. लेकिन, 7. कष्ट देने पर आमादा, 8. रिहाई का उपाय, 9. बुरी साइत, 10. दिल रूपी वस्तु