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बन्द पुस्तक को खोलती है हवा / जहीर कुरैशी

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बन्द पुस्तक को खोलती है हवा
बात करती है बोलती है हवा

जो भी उड़ने की बात करता है
उसके पंखों को तोलती है हवा

आदमी, पेड़ ,पशु ,परिन्दों में
साँस-संगीत घोलती है हवा

कौन है जो हवा को बाँध सके
इक चुनौती-सी डोलती है हवा

बन्द कमरे में सभ्य लोगों के
नंगे पन को टटोलती है हवा
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