भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक कंधा / तेज राम शर्मा

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेज राम शर्मा |संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुखों के टूटते पहाड़ हों
दोस्ती के हों हाथ
अविरल आँसुओं की हो धार
नन्हें पाँव लांघ लेना चाहते हों
पहाड़ की चोटी
प्रेम-भरा कोई मन
पहाड़-सा कोई बोझ
दुल्हन की डोली
देवता की पालकी
या निकला हो कोई वापस
न मुड़ने वाली
लंबी यात्रा पर
सभी ढूंढ रहे हैं
एक कंधा।