भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / श्रीनिवास श्रीकांत

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत |संग्रह=घर एक यात्रा है / श्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वायवीय है कविता
नदी
एक पिघलती हुई
धमनियों से रिसता
रक्त
शरीर से फूटता
एक नया
शरीर
दर्पण के अन्दर दर्पण

खुलती किसी में आँख की तरह
किसी में उभरता प्रतिबिम्ब
कवि पैदा करता है
नए अर्थ
मगर अपने कायान्तर में भी
वह
होती है वही |