भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सामंजस्य / बहादुर पटेल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहादुर पटेल |संग्रह= }} <Poem> तुम्हारा मुस्कुराना इ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा मुस्कुराना इस तरह
दिल में हलचल पैदा करता है
मानो
हरी-हरी कोंपले निकलने
के लिए आतुर हों
और मैं उस पौध को
सींच रहा हूँ अनवरत
ताकि
कोंपलें निकलती रहें
लगातार, लगातार।