भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हंस का इम्तहान बाकी है / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=चांदनी का दु:ख }} Category:ग़ज़ल <po...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हंस का इम्तहान बाकी है
एक ऊँची उड़ान बाकी है

मेरे पैरों तले धरा न सही
शीश पर आसमान बाकी है

सूखे पनघट के घाट पर अब तक
रस्सियों का निशान बाकी है

गाँव में खण्डहर की सूरत में
उस हवेली की शान बाकी है

उसका रुँधने लगा गला लेकिन
आँसुओं की ज़ुबान बाकी है

आँकड़ों के सिवा, गरीबों पर
झुग्गियों का बयान बाकी है

यात्रा खत्म हो गई लेकिन
यात्रा की थकान बाकी है