मैं दुनिया का नागरिक हूं यह देश मेरा निवास है
मुझमें पराजय का क्रोध है और लड़ने की हमेशा बची इच्छा
जब हम इतने अलग हैं तो प्रेम कैसा ? जब एक नहीं हैं तो किसका यह देश और इसका प्रेम ?
जो ऐसे प्रेम के नाम पर दी जाती है मैं उस यातना के खिलाफ हूं
मैं जीवित हूं कि सोचता भी हूं दूसरे के समान जीवन जीने के बारे में।