भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुनिया का नागरिक / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: मैं दुनिया का नागरिक हूं यह देश मेरा निवास है मुझमें पराजय का क्र...)
मैं दुनिया का नागरिक हूं यह देश मेरा निवास है
मुझमें पराजय का क्रोध है और लड़ने की हमेशा बची इच्छा
जब हम इतने अलग हैं तो प्रेम कैसा ? जब एक नहीं हैं तो किसका यह देश और इसका प्रेम ?
जो ऐसे प्रेम के नाम पर दी जाती है मैं उस यातना के खिलाफ हूं
मैं जीवित हूं कि सोचता भी हूं दूसरे के समान जीवन जीने के बारे में।