भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूख / केशव

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह भूखा ज़रूर है
शायद सृष्टि के पल से
पर निर्लज्ज नहीं
एक-एक कौर में बेशक
कैद है उसका सपना
पर वह
सपने का मोहताज़ नहीं

वह अपनी
भूख़ के साथ रहता है
हर पल
पर उसका
एक भी पल भूखा नहीं

दुनिया के लिए
भूख के कई नाम
पर उसके लिए
सिर्फ पेट की आग
इस आग में तपकर
निकलता वह
भूख़ के लिए जीना छोड़
भूख से लगातार लेता होड़ ।