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कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गये / बशीर बद्र

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सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण

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कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गए
रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए

क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो
सैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए

ये भी मुमकिन है के उसने मुझको पहचाना न हो
अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फेंक दो
वे अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन है
उनकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए