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आज नाराज होने से क्या होगा / सौरीन्द्र बारिक
Kavita Kosh से
कभी तो कुछ दे नहीं पाया
क्या देता,मेरे पास क्या है देने के लिए
एक कविता लिखी है, पढोगी
तुम कौन हो
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
बूढी मालिन अथवा कोई राक्षसी
जब से तुम आयी हो तभी से
कुछ हो गया है मुझे
सब कुछ बदल गया है
कौन सा जादू किया कि
सारी की सारी चीजें
कुछ अलग अलग सी लगने लगीं
उस अलगाव में तुम ही सामने आयी
किसी तनहाई की मनमोहक बात
मेरे रक्तकण में भर गयी
यह कौन सा दान है
जिसकी चीज उसे लौटा देना
कभी तो कुछ दे न पाया
कविता एक लिखी है
जरा पढोगी
अनुवाद - वनमाली दास