भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह अग्निकिरीटी मस्तक / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Eklavya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह }} <poem> सब चेहरों पर सन्नाटा हर दिल म...)
सब चेहरों पर सन्नाटा
हर दिल में पड़ता काँटा
हर घर में है गीला आँटा
वह क्यों होता है?
जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
साँसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिये?
कुछ लोग खेत बोते हैं
कुछ चट्टानें ढोते हैं
कुछ लोग सिर्फ़ होते हैं
इसका क्या मतलब?
मेरा पथराया कन्धा
जो है सदियों से अन्धा
जो खोज चुका हर धन्धा
क्यों चुप रहता है?
यह अग्निकिरीटी मस्तक
जो है मेरे कन्धों पर
यह ज़िंदा भारी पत्थर
इसका क्या होगा?