भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो सिरे / अमिता प्रजापति
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:37, 16 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमिता प्रजापति |संग्रह= }} Category:कविताएँ <Poem> ज़िन्...)
ज़िन्दगी की कमीज़ के
दोनों सिरों पर लगे
काज और बटन की तरह हैं हम
वक़्त को
जब झुरझुरी आती है
इस कमीज़ को ढूंढ़ कर
पहन लेता है