भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाँच बज गए / रवीन्द्रनाथ त्यागी
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 17 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी |संग्रह= }} <poem> पाँच बज गए दफ़...)
पाँच बज गए
दफ़्तरों के पिंजरों से
हज़ारों परिन्दे (जो मुर्दा थे)
सहसा जीवित हो गए...
पाँच बज गए...
आकुल मन
शलथ तन...
भावनाओं के समु्द्र
शब्दों के पक्षी
गीतों के पंख खोल
उड़ गए... उड़ गए...
पाँच बज गए।