भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतिहास / तुलसी रमण

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=पृथ्वी की आँच / तुलसी रमण }} <Poem> य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहीं कहीं शहर में खो गये
खेत-खलिहान संग
राजा जुनगा के तेरह गाँव
जाखू की परिक्रमा में गूँजती
विलायती कुत्तों की भोंक
गोरी मेमों की कामुक किलकारियाँ

अभी-अभी भागा है सीढ़ियों से
मालरोड़ झाँक कर
पुलिस के भय से भोला पहाड़िया

पृथ्वी के गर्भ से गुज़र कर एक सौ तीन बार
आगे-आगे चला आया कालका से
अपनी सोठी लिये निरक्षर बाबा भलकू
चली आई हाँफती पीछे पालतू कुतिया
लाट साहब की रेल

देर रात चलता रहा 'गएटि' में नाच
पटरियों संग बिछा भलकू का दिमाग़

भलकू= एक पहाड़ी मज़दूर जिसने कालका-शिमला रेल-लाईन का सर्वे महज़ अपनी सोठी के सहारे कर दिया था।