भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औरतें: छ / तुलसी रमण

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 20 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=पृथ्वी की आँच / तुलसी रमण }} <Poem> {{KK...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=पृथ्वी की आँच / तुलसी रमण
}}



नींद सोयी लोमड़ी को

एक रात दबा लेता

              माघ : एक बाघ



सुबह तक आधी बर्फ़ में

डूब जातीं औरतें

और आधी छिप जातीं

घास-पत्ती के बोझ में



जब से आता रहा माघ

डूबती रही औरतें



जुलाई 1998

</poem>