भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरिया बहता रहता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 23 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=रास्ता बनता रहे / ...)
दरिया बहता रहता है
साहिल तकता रहता है
कितने काले बादल हों
चांद निकलता रहता है
तुम चाहो तो रुक जाओ
जीवन चलता रहता है
पैसे वालों पे अक्सर
पैसा हँसता रहता है
मैं उसके सदक़े जाऊँ
हरदम हँसता रहता है
पत्थर के अन्दर ‘परवेज़’
कौन पिघलता रहता है