भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैत्रेयी / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 25 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2 }} <poem> ....और तब याज्ञवल्क्य के वन...)
....और तब
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े
कदमों को रोक कर
मैत्रेयी ने कहा -
'ज्ञान का अमरत्व दें मुझे'
ॠषि ठहर गये
मैत्रेयी आज भी रोको ॠषि को
प्रकृति से पूछो
इतिहास से और समय से मांगो
ज्ञान का अमरत्व
मैत्रेयी
फिर ठुकरा दो
ज्ञान के एवज में
संसार भर की
धन-संपदा !