भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कनेर की डाली / आलोक श्रीवास्तव-२

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 27 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2 }} <poem> कनेर की डाली डोलती है … च...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 

कनेर की डाली
डोलती है …

चैत की हवायें
आती हैं दूर दूर से लौटती

सूनी दुपहरी गिरता है
पत्ता एक
स्वर नहीं, शब्द नहीं
बस दूर सीमांत पर बहते
पहाड़ी झरने का स्वर बोलता है

सारी दोपहर
उदास एक स्मरणीय-सी
कनेर की डाली
डोलती है…