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मदहोशी / सौरभ
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हर शख़्स बदहवासी में नजर आता है
अपनी मदहोशी में मस्त नजर आता है
अपने ही नशे में चूर घूम रहा है
पूछते हो सँसार रँगीन नजर आता है
कोई आ रहा है कोई जा रहा है
कोई हँस रहा है कोई गा रहा है
कोई खरीद रहा है कोई बेच रहा है
कोई दूर से बस देख रहा है
कोई दिखा रहा है झूम-झूम तमाशा
कोई देख मँद-मँद मुस्का रहा है।