भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब तक रतजगा नहीं चलता / देवमणि पांडेय

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:15, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवमणि पांडेय }}<poem> जब तक रतजगा नहीं चलता इश्क क्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तक रतजगा नहीं चलता
इश्क क्या है पता नहीं चलता।

ख्वाब की रहगुज़र पे आ जाओ
प्यार में फासला नहीं चलता।

उस तरफ चल के तुम कभी देखो
जिस तरफ रास्ता नहीं चलता।

कोई दुनिया है क्या कहाँ ऐसी
जिसमें शिकवा गिला नहीं चलता

दिल अदालत है इस अदालत में
वक्त का फैसला नहीं चलता।

लोग चेहरे बदलते रहते हैं
कौन क्या है पता नहीं चलता।

दुनिया होती नहीं हसीन अगर
प्यार का सिलसिला नहीं चलता।