भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तभी से / राजुला शाह

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 12 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजुला शाह |संग्रह=परछाईं की खिड़की से / राजुला ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

झाड़ के रंग से अलग
कब झरे ये
छत में बिखरे
रंग
भूल पिछला रूप
भूरे को चुना
साथ इनके
हवा के पर
रंग गये
फिर
हवा भूरी हो
फिरे है
तभी से।