भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं नहीं हूँ / सुन्दरचन्द ठाकुर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 14 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुन्दरचन्द ठाकुर |संग्रह= }} <poem> वह जो खिसियाता हु...)
वह जो खिसियाता हुआ आदमी है
मैं नहीं हूँ
जिसकी आँख में नमी है
मैं नहीं हूँ
बात-बात पर छलकता
रोशनी में झलकता
अफ़सरों की डाँट खाता
मुस्तैद नौकरी बजाता
राशन की लाइन में
ख़ुशियों की ख़्वाहिश में
जीवन के जंजाल में
इतने बुरे हाल में
मैं चीखता कहता हूँ तुमसे
वह मैं नहीं हूँ
मैं मज़े में हूँ