भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन दिनों / प्रियंका पण्डित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 26 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियंका पण्डित |संग्रह= }} <Poem> बहुत मामूली दोपहर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत मामूली दोपहरें हैं
इन दिनों मेरे पास
दरवाज़ों पर जो धूप टपकती थी
मायूस-सी चुप खड़ी है
हवाएँ दस्तक देने के पहले ही
बेहद शुष्क हो जाती हैं
शहर तो वैसा ही है
-बीतता हुआ-
कश्मीर की भारी बर्फ़बारी के बाद
हाँ, मौसम थोड़ा ठण्डा होता जा रहा है
मैं नेहद मामूली दोपहरों में बन्द हूँ
तुम कहाँ हो?