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ख़ुशबुओं की तरह जो बिखर जाएगा / गोविन्द गुलशन

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ख़ुशबुओं की तरह जो बिखर जाएगा
अक़्स उसका दिलों में उतर जाएगा

दर्द से रोज़ करते रहो गुफ़्तगू
ज़ख़्म गहरा भी हो तो भर जाएगा

वो न ख़ंजर से होगा न तलवार से
तीर नज़रों का जो काम कर जाएगा

हसरतों के चराग़ों को रौशन करो
दिल तुम्हारा उजालों से भर जाएगा

वक़्त कैसा भी हो वो ठहरता नहीं
जो बुरा वक़्त है वो गुज़र जाएगा

धड़कनों की तरह चल रही है घड़ी
एक दिन वक़्त यानी ठहर जाएगा

ज़िन्दगी से मुहब्बत बहुत हो गई
जाने कब दिल से मरने का डर जाएगा