Last modified on 21 अगस्त 2006, at 12:00

सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 21 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लेखक: रसखान

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।

जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥

नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।

ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥