भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सवाल करो / राग तेलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:59, 3 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग }} <Poem> सवाल करो खड़े होकर अगर चीज़ें तुम...)
सवाल करो खड़े होकर
अगर चीज़ें तुम्हें समझ नहीं आतीं
अगर तुम्हारे पास
वे चीज़ें नहीं हैं जो दूसरों के पास हैं तो सवाल करो
सवाल करो
अगर तुम्हें शिक्षा सवाल करना नहीं सिखाती
अगर उत्तरों से और सवाल पैदा नहीं होते तो सवाल करो
सवाल करो
अगर तुम्हारे होने की महत्ता को स्वीकारा नहीं गया
अगर तुम अपने-आप के होने को
अब तक साबित नहीं कर पाए हो तो सवाल करो
सवाल करो
और जानो-समझो ऐसा क्यों है ?
ऐसा कौन चाहता है कि सवाल ही पैदा न हों !
ऐसा होने से वाकई किसका बिगड़ता है और
किसका क्या बनता है ?
इस बारे में सबसे सवाल करो
इस शोर भरे समय की चुप्पी तोड़ना चाहते हो तो
सवाल ज़रुर करो ।