भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करतूतों जैसे ही सारे काम हो गये / नईम

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 13 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम }} <poem> करतूतों जैसे ही सारे काम हो गये किष्कि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करतूतों जैसे ही सारे काम हो गये
किष्किंधा में लगता -
अपने राम खो गये

बालि और सुग्रीवों से कुछ -
कहा न जाये,
न्याय मांगते -
शबरी, शम्बूकों के जाये
करे धरे सब हवन, होम भी
हत्या और हराम हो गये

स्वप्नों सूझों की जड़ में ही -
दिग्गज मठ्ठा डाल रहे हैं,
और अस्मिता पर अपनी ही
कीचड़ लोग उछाल रहे हैं
देश देश के क्षत्रप मिलकर -
आज केन्द्र से बाम हो गये

देनदारियों का मत पूछो,
डेवढ़ी बैठेंगी आवक से
फिर भी पड़े हैं पीछे
राम हमारे, मृग शावक के
वर्तमान रिस रहा सिरे से -
गत, आगत बदनाम हो गये