भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !

इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनो जोरा जोरी !

छोड़ि देई कि बंद चोलिया, पकरैं चोर हम अपनो री !

"हरीचन्द" इन दोउन मेरी, नाहक कीनी चितचोरी !

तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !!