भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है / बहज़ाद लखनवी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:03, 2 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहज़ाद लखनवी |संग्रह= }}<poem> Category:ग़ज़ल तुम्हारे ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है
मुक़द्दर बनाने को जी चाहता है

जो तुम आओ तो साथ ख़ुशियाँ भी आयें
मेरा मुस्कुराने को जी चाहता है

तुम्हारी मुहब्बत में खोयी हुई हूँ
तुम्हें ये सुनाने को जी चाहता है

ये जी चाहता है कि तुम्हारी भी सुन लूँ
ख़ुद अपनी सुनाने को जी चाहता है