भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर तुम्हारा? हमने देखा शहर तुम्हारा / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 2 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem>शह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर तुम्हारा ? हमने देखा शहर तुम्हारा
शासक-चोर, लुटेरा-नेता शहर तुम्हारा

संगीनों की नोंक मिली जिस ओर गए हम
बख्तरबंद पुलिस का पहरा शहर तुम्हारा

फुटपाथों को चना-चबेना मिल न सका पर
आदमखोर हुआ सब खाता शहर तुम्हारा

देह किसी ने बेची, कोई बच्चे बेचे
बदले में ठोकर ही देता शहर तुम्हारा

गाँवों के काँधे चिन दीं ऊँची मीनारें
लें अँगड़ाई तभी गिरेगा शहर तुम्हारा

की मनमानी भर आँखों में मोम सभी की
सूर्य उगा है अब पिघलेगा शहर तुम्हारा